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हुसैनी ब्राह्मण मोहयाल समुदाय के लोग हिंदू और मुसलमान दोनों में होते हैं. मौजूदा समय में हुसैनी ब्राह्मण अरब, कश्मीर, सिंध, पाकिस्तान, पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली और भारत के अन्य हिस्सों में रहते हैं. ये लोग 10 मुहर्रम यानी आज के दिन हुसैन की शहादत के गम में मातम और मजलिस करते हैं.
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यहां तक कि इस समुदाय से कई प्रसिद्ध हस्तियों का नाम भी जोड़ा जाता है. कहते हैं कि फिल्म अभिनेता और सांसद रहे स्वर्गीय सुनील दत्त हुसैनी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके अलावा ऊर्दू लेखक कश्मीरी लाल जाकिर, साबिर दत्त और नंदकिशोर विक्रम हुसैनी ब्राह्मण समुदाय से जुड़े नाम हैं.
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प्रोफेसर असगर नकवी बताते हैं कि पैगंबर मोहम्मद के दौर की बात है, जब सुनील दत्त के पूर्वजों के संतान नहीं हो रही थी. उस समय वह अल्लाह के रसूल पैगंबर मोहम्मद के पास पहुंचें. दत्त परिवार ने अपनी बात रखते हुए कहा कि रसूल हमारे परिवार में औलाद नहीं हो रही है. ये सुनकर नबी ने इमाम हुसैन से कहा कि आप इनके लिए दुआ करो. उस वक्त इमाम हुसैन बच्चे थे और वे खेल रहे थे. हुसैन ने अपने हाथ उठाकर खुदा से उनके लिए दुआ की. इमाम हुसैन की दुआ के बाद दत्त परिवार में बेटे का जन्म हुआ, तभी से ये हुसैनी ब्राह्मण के नाम से पहचाने जाने लगे.
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कर्बला की जंग में इमाम हुसैन का साथ देने गए हुसैनी ब्राह्मण भी शहीद हो गए थे. ये वही हुसैनी ब्राह्मण थे, जो हुसैन की दुआ के बाद जन्मे थे.
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कहा जाता है कि कर्बला की जंग में इमाम हुसैन के साथ उनके परिवार और 72 साथियों के अलावा दत्त परिवार के 7 बेटे भी शहीद हुए थे.
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हिंदुस्तान के सभी धर्मों में हज़रत इमाम हुसैन से अकीदत और प्यार की परंपरा रही है. कर्बला की जंग ने उदारवादी मानव समाज को हर दौर में प्रभावित किया है. यही वजह है कि भारतीय समाज में शहीद मानवता हज़रत इमाम हुसैन की शहादत का शोक न केवल मुस्लिम समाज के लोग मनाते हैं, बल्कि हिंदू समाज में भी इंसानियत की उस महान शख्सियत की शहादत का शोक मनाया जाता है.
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कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद के छोटे नवासे इमाम हुसैन इस्लामिक इतिहास के पहले और शायद आखिरी ऐसे बच्चे हैं, जिनके जन्म पर उनका परिवार रोया था. यहां तक की रसूल खुद रोए थे, जब जिब्राईल अमीन ने इमाम हुसैन के जन्म पर बधाई के साथ यह बताया कि उस बच्चे को कर्बला के मैदान में तीन दिन का भूखा प्यासा रखा जाएगा. साथ ही उनके 72 साथियों के साथ उन्हें शहीद किया जाएगा और इस परिवार की औरतों और बच्चों को कैद कर लिया जाएगा.
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श्रीनगर के इमामबाड़े में हज़रत इमाम हुसैन मुंए मुबारक मौजूद हैं, जो काबुल से लाया गया है. हुसैनी ब्राह्मण उसे 100 साल पहले काबुल से लाए थे.
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असगर नकवी कहते हैं कि हुसैनी ब्राह्मण दरदना भट्टाचार्य के वंशज थे. उनमें आत्मसम्मान और बहादुरी कूट-कूट कर भरी हुई थी. कर्बला में हुसैन की शहादत की खबर सुनी तो हुसैनी ब्राह्मण 700 ई. में इराक पहुंचे और इमाम हुसैन का बदला लेकर लौटे.
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श्रीनगर के इमामबाड़े में हज़रत इमाम हुसैन मुंए मुबारक मौजूद हैं, जो काबुल से लाया गया है. हुसैनी ब्राह्मण उसे 100 साल पहले काबुल से लाए थे.
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प्रेमचंद का प्रसिद्ध नाटक 'कर्बला' सही और गलत से पर्दा उठाता है. अवध का मुहर्रम हिन्दू–मुस्लिम एकता गंगा-जमुनी तहजीब की एक खूबसूरत और पाकीजा मिसाल पेश करता है.
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सैय्यद अतहर हुसैन बताते हैं कि लखनऊ चौक में तो लगभग हर हिंदू घर में पहले ताजिया रखा जाता था. अब भी ज्यादातर पुराने हिंदू घरों में ताजिएदारी होती है और मिन्नती ताजिएदारी का रिवाज भी है.
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कहा जाता है कि सभी हुसैनी ब्राह्मण लोगों की गर्दन पर निशान होते हैं. दरअसल, उनका मानना है कि ये निशान इमाम हुसैन और ब्राह्मण की शहादत के प्रतीक हैं.
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