Tuesday, October 19, 2021

रात को सोते समय इस्तिगफार!

 रात को सोते समय इस्तिगफार!


हुज़ूर ﷺ ने फरमाया:


"जो शख्स बिस्तर पर जाते वक्त ये कलिमात.... 


"अस्तगफिरूल्लाह-ल्लज़ी ला इलाह इल्ला हुवल हय्यूल क़य्युमु व अतुबु इलैहि"


أستغفرُ اللهَ الَّذي لا إلهَ إلَّا هو الحيُّ القيُّومُ وأتوبُ إليه


तीन बार पढ़े तो अल्लाह तआला उसके गुनाहों को बख्श देते हैं अगरचे वह समुंदर के झाग के बराबर हो, अगरचे दरख्तों के पत्तों के बराबर हो, अगरचे तह दर तह जमे हुए रेत के ज़र्रों के बराबर हो, अगरचे दुनिया के दिनों की तादाद के बराबर हो।

(तिर्मिज़ी :2/177: 3397)


सबको इसकी तलक़ीन करे

Tuesday, October 5, 2021

मुसलमानों के लिए गैर मुस्लिम की सोच

 पास से गुज़रती टैक्सी को उसने रोका,


जी मैडम !!!


टैक्सी वाला एक मौलवी टाइप शख्स था, लड़की के दिल ने कहा कह दे:

      " जाइए साहब !"

लेकिन ऑफिस सुनसान जगह पर होने की वज़ह से कम ही टैक्सी वाले इधर से गुज़रते और ऊपर से गर्मी ने बुरा हाल किया हुआ था और कोई रास्ता ना था,


सिविल लाइन जाना है, लड़की बोली,


ड्राइवर:

      " जी बैठिए!"


कितने पैसे ??, 

ड्राइवर :

     " 200 दे देना "


लड़की के दिल में खयाल आया उस दिन तो 300 रुपए देकर गई थी,


शक्ल और लिबास तो ऐसा लग रहा है कि जैसे मौलवी है !! सर तो कहते हैं कि:

     " मौलवी बहुत लालची होते हैं, अरे सर ये भी तो कहते हैं हवस के मारे होते हैं, भरोसे के काबिल नहीं ये मौलवी"


ये सोच कर वो डर गई लेकिन तेज़ धूप उसे ज़्यादा नहीं सोचने दे रही थी,


ड्राइवर:

     " मैडम ! चलें बैठें 180 दे दीजिएगा"


लड़की बोली:

     " जी सही लेकिन सामने मेरी फ़ाइल का कार्टन है भारी है उठाया नहीं जा रहा,आप......."


जी मैं रख देता हूं आप बैठिए, ड्राइवर बोला,


गाड़ी चलते ही ड्राइवर ने इजाज़त चाही:

      " दरअसल मैं बयान सुन रहा था, आपको बुरा ना लगे तो चला दूं ? "


जी आप सुन लें, लड़की बोली,


ड्राइवर ने प्लयेर ऑन किया , उन्वान था " पर्दा"


ना चाहते हुए भी उसे सुनना पड़ रहा था, लिबरल और नास्तिकों की महफ़िल और दोस्ती में रह कर उसे सिर्फ इस्लाम से नफ़रत ही दिलाई गई थी, कि


" मौलवी एक खूंखार भेड़िया का रूप दिखाया गया था जिसका मकसद, माल, हवस, लालच, औरत के जिस्म के सिवा कुछ ना था, मजहब के नाम पर पैसा खाना उसका पेशा था "


बयान में मौलवी साहब ज़ोरदार आवाज़ में गरजे ,


" पर्दा अल्लाह का हुक्म है एक औरत के जिस्म का मुहाफिज है, उसके चेहरे से लेकर जिस्म के हिस्से हाथ पैर तक को ढक कर वह उसे हज़ारों की भीड़ में भी महफूज़ होने का यकीन दिलाता है, पर्दा औरत को शैतानी नज़रों से बचाता है, देखने वाले आंखे मोड़ लेते हैं कि कोई शरीफ लड़की है"


रब का क़ुरआन कहता है,


یٰۤاَیُّہَا النَّبِیُّ قُلۡ لِّاَزۡوَاجِکَ وَ بَنٰتِکَ وَ نِسَآءِ الۡمُؤۡمِنِیۡنَ یُدۡنِیۡنَ عَلَیۡہِنَّ مِنۡ جَلَابِیۡبِہِنَّ ؕ ذٰلِکَ اَدۡنٰۤی اَنۡ یُّعۡرَفۡنَ فَلَا یُؤۡذَیۡنَ ؕ وَ کَانَ اللّٰہُ غَفُوۡرًا رَّحِیۡمًا


" ऐ नबी ! अपनी बीवियों से और अपनी साहबज़ादियों से और मुसलमानों की औरतों से कह दो कि वह अपने ऊपर अपनी चादरें लटका लिया करें, इससे बहुत जल्द उनकी शिनाख्त हो जाया करेगी फिर ना सताई जाएंगी और अल्लाह तआला बख्शने वाला और महरबान है "


पर्दा औरत की इफ्फत है सलामती का ज़ामिन है उसकी पाकदामिनी की ज़ाहिरी अलामत है पर्दे मे ही उसकी इज़्ज़त है,


लेकिन बेपर्दा की मिसाल उस खुले गोस्त की सी है जिसपर हर एक मक्खी बैठ कर अपना गंध निकालती है, हर एक उसे खाने की निगाह से घूरता है,हर आंख उसे खाने लुटने की नज़र से देखती है,"


उसे ऐसा लग रहा था के जैसे सब अल्फ़ाज़ उसी पर हों उसके ऑफिस से आने जाने पर रास्ते में खड़े हर लफंगे की नज़र उस पर होती थी,


उसे ऐसा लग रहा था उसकी इस मुश्किल का वाहिद हल यही है, लेकिन पर्दा !! और वह करे जिसके नज़दीक पर्दा ज़ालिम था , दक्यानूसी थी,


इन्हीं सोचों में उसकी बताई गली में टैक्सी पहुंच चुकी थी,


टैक्सी से उतरते हुए वह कह रही थी ," सामान प्लीज़ बाहर रख दें" और कॉल की, " ममा सनी को भेजिए कुछ फ़ाइल है वज़न ज़्यादा है ऊपर लेकर जानी है,"


मां ने कहा सनी घर पर नहीं है,


ड्राइवर बोला ," मैडम ! चलें मैं छोड़ देता हूं,"उसके ज़ेहन मे पहली ही सोच आईं, मुमकिन है पैसों की लालच में ऐसा कर रहा हो, चलो कुछ मांगता है तो दे दूंगी,"


जी बेहतर ! ड्राइवर एक फ्लोर चढ़ कर उसके कहने पर एक फ्लैट के सामने रुका, बस यहां रख दें, लड़की बोली,


और साथ ही 300 रुपए निकाल कर दिए ,


ड्राइवर ," ये 300 किस लिए ?"


लड़की बोली," दरअसल कुछ पहले मैं आईं थी तो 300 ही लेते हैं और आपने सामान भी तो लाया , अगर उसके आप अलग से लेना चाहते हैं तो बताएं "


ड्राइवर बोला ,' नहीं बहन ,आप अपने ये पैसे रखिए जो बात हुई थी मैं उससे ज़्यादा नहीं ले सकता , बाक़ी रही सामान की बात तो हमारा दीन हमें दूसरों लोगों से हमदर्दी का दर्स देता है इसलिए मैं ये सामान लाया हूं,


जाते हुए लड़की के मुंह से निकल गया," क्या आप मौलवी हैं ??"


वह मुस्कुराया और कहने लगा," मुमकिन है मौलवी के बारे में आपको गलत गाइड किया गया है, मैं मौलवी,आलिम, हाफ़िज़ तो नहीं, लेकिन इनसे मुहब्बत करने वाला हूं

Monday, October 4, 2021

सूरतुल फ़ातिहा हर बीमारी के लिए दवा है

 

क़ुरआन शरीफ हिंदी में – सूरह फातिहा तर्जुमा और तफ्सील के साथ- QURAN IN HINDI SURAH FATIHA

सूरह फातिहा यह सुरह मक्का में उतरी ! सूरह फातिहा में सात ( 7 ) आयतें और एक ( 1 Ruqu ) रुकु  है

SURAH AL FATIHA 

  • بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
  • ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
  • ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
  • مَٰلِكِ يَوْمِ ٱلدِّينِ
  • إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ
  • ٱهْدِنَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلْمُسْتَقِيمَ
  • صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا ٱلضَّآلِّينَ

सूरतुल फ़ातिहा ( Al- Fatiha ) हिंदी मेँ

अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम*बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम*

  • अल्हम्दु लिल्लाहे रब्बिल आलमीन*
  • अर्रहमान निर्रहीम*
  • मालिके यौमिद्दीन*
  • इय्याका नअबुदु वइय्याका नस्तईन*
  • इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम*
  • सिरातल लज़ीना अनअम्ता अलैहिम गै़रिल मग़दूबे अलैहिम वलद दॉल्लीन*

सूरतुल फ़ातिहा ( Al- Fatiha ) हिंदी मेँ

अल्लाह के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान रहमतवाला है

  • 1. सब खू़बियाँ अल्लाह को जो मालिक है सारे जहान वालों का !
  • 2. बहुत मेहरबान रहमत वाला !
  • 3. रोज़े जज़ा (इन्साफ के दिन) का मालिक !
  • 4. हम तुझी को पूजें और तुझी से मदद चाहें !
  • 5. हमको सीधा रास्ता चला !
  • 6. रास्ता उनका जिन पर तूने एहसान किया !
  • 7. न उन का जिन पर ग़ज़ब (प्रकोप) हुआ और न बहके हुओं का !

तफसीर – सूरतुल फ़ातिहा

अल्लाह के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान रहमत वाला ! अल्लाह की तारीफ़ और उसके हबीब ( मेहबूब पर दरूद ) पर दरुद

सूरतुल फ़ातिहा के नाम : SURAH FATIHA KE NAAM

इस सूरह के कई नाम हैं – फा़तिहा, फा़तिहतुल किताब, उम्मुल कु़रआन, सूरतुल कन्ज़, काफि़या, वाफ़िया, शाफ़िया, शिफ़ा, सबए मसानी, नूर, रुकै़या, सूरतुल हम्द, सूरतुल दुआ़ तअलीमुल मसअला, सूरतुल मनाजात सूरतुल तफ़वीद, सूरतुल सवाल, उम्मुल किताब, फा़तिहतुल क़ुरआन, सूरतुस सलात.

इस सूरह में सात आयतें ( 7 Ayat ), सत्ताईस कलिमें ( 27 Kalime ), एक सौ चालीस अक्षर (140 letter) हैं !  कोई आयत नासिख़ या मन्सूख़ नहीं.

शानें नज़ूल यानी किन हालात में उतरी :

ये सूरत मक्कए मुकर्रमा या मदीनए मुनव्वरा या दोनों जगह उतरी ! अम्र बिन शर्जील का कहना है कि नबीये करीम (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम –  (  उन पर अल्लाह तआला के दुरुद और सलाम हों ) ने हज़रत ख़दीजा रदियल्लाहो तआला अन्हा से फ़रमाया – मैं एक पुकार सुना करता हूँ जिसमें इक़रा यानी ‘पढ़ों’ कहा जाता है ! 

वरक़ा बिन नोफि़ल को खबर दी गई ! उन्होंने अर्ज़ किया – जब यह पुकार आए ! आप इत्मीनान से सुनें ! इसके बाद हज़रत जिब्रील ने खि़दमत में हाजि़र होकर अर्ज़ किया-फरमाइये:  बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम ! अल्हम्दु लिल्लाहे रब्बिल आलमीन– यानी अल्लाह के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान, रहमत वाला ! सब खूबियाँ अल्लाह को जो मालिक हे ! सारे जहान वालों का ! इससे मालूम होता है

कि उतरने के हिसाब से ये पहली सूरत है ! मगर दूसरी रिवायत से मालूम होता है ! कि पहले सूरह इक़रा उतरी ! इस सूरह में सिखाने के तौर पर बन्दों की ज़बान में कलाम किया गया है

नमाज़ में इस सूरह का पढ़ना वाजिब मतलब ज़रुरी है !  इमाम साहब और अकेले नमाज़ी के लिये तो हक़ीक़त में अपनी ज़बान से, और मुक्तदी   (मतलब इमाम साहब के पीछे नमाज़ पढ़ने वाले ) के लिये इमाम साहब की ज़बान से ! 

Surah Fatiha

सही हदीस में है इमाम साहब का पढ़ना ही उसके पीछे नमाज़ पढ़ने वाले का पढ़ना है ! कुरआन शरीफ़ में इमाम साहब के पीछे पढ़ने वाले को ख़ामोश रहने और इमाम साहब जो पढ़े ! उसे सुनने का हुक्म दिया गया है.

अल्लाह तआला फ़रमाता है ! कि जब क़ुरआन पढ़ा जाए तो उसे सुनो और खा़मोश रहो ! मुस्लिम शरीफ़ की हदीस है कि जब इमाम साहब क़ुरआन पढ़े, तुम ख़ामोश रहो.

और बहुत सी हदीसों में भी इसी तरह की बात कही गई है. जनाजे़ की नमाज़ में दुआ याद न हो तो दुआ की नियत से सूरह फ़ातिहा पढ़ने की इजाज़त है ! क़ुरआन पढ़ने की नियत से यह सूरह नहीं पढ़ी जा सकती ! 

सूरतुल फ़ातिहा की खूबियाँ: SURAH FATIHA KI KHUBIYA

हदीस की किताबों में इस सूरह ( surah fatiha ) की बहुत सी ख़ूबियाँ बयान की गई है.

नबीये करीम हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया तौरात व इंजील व जु़बूर में इस जैसी सूरत नहीं उतरी.( तिरमिज़ी ).-Tirmizi 

एक फ़रिश्ते ने आसमान से उतरकर नबीये करीम हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर सलाम अर्ज़ किया और दो ऐसे नूरों की ख़ूशख़बरी सुनाई जो नबीये करीम हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से पहले किसी नबी को नहीं दिये गए. एक सूरह फ़ातिहा दूसरे सुरह बकरह की आख़िरी आयतें.( मुस्लिम शरीफ़ )

सूरतुल फ़ातिहा हर बीमारी के लिए दवा है. (दारमी). SURAH FATIHA SE ILAJ

सूरह फ़ातिहा सौ मर्तबा (100) पढ़ने के बाद जो दुआ मांगी जाए, अल्लाह तआला उसे क़ुबूल फ़रमाता है. (दारमी)

इस्तिआजा : क़ुरआन शरीफ़ पढ़ने से पहले “अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम” (अल्लाह की पनाह मांगता हूँ भगाए हुए शैतान से) पढ़ना प्यारे नबी हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का तरीक़ा यानी सुन्नत है. (ख़ाज़िन) 

लेकिन शागिर्द अगर उस्ताद से पढ़ता हो तो उसके लिए सुन्नत नहीं है. (शामी) 

नमाज़ में इमाम साहब और अकेले नमाज़ी के लिये सना मतलब सुब्हानकल्लाहुम्मा पढ़ने के बाद आहिस्ता से {धीरे से}  “अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम” पढ़ना सुन्नत हैं.

तस्मियह: बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम क़ुरआने पाक की आयत है मगर सूरह फ़ातिहा या किसी और सूरत का हिस्सा नहीं है, इसीलिये नमाज़ में ज़ोर के साथ् (ऊँची आवाज़ में ) न पढ़ी जाए !

SURAH FATIHA SE ILAJ

 बुखारी और मुस्लिम शरीफ़ में लिखा है ! कि प्यारे नबी हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और हज़रत सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु और फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपनी नमाज़ “अलहम्दोलिल्लाहेरब्बिलआलमीन “यानी सूरह फ़ातिहा की पहली आयत से शुरू करते थे 

तरावीह ( रमज़ान मुबारक में रात की ख़ास (special) {विशेष}नमाज़ ) में जो ख़त्म किया जाता है ! उसमें कहीं एक बार पूरी बिस्मिल्लाह शरीफ ज़ोर से ज़रूर पढ़ी जाए ! ताकि एक आयत बाक़ी न रह जाए.

क़ुरआन शरीफ़ की हर सूरह बिस्मिल्लाह से शुरू की जाए, सिवाय सूरह बराअत या सूरह तौबह के ! 

सूरह नम्ल में सज्दे की आयत के बाद जो बिस्मिल्लाह आई है ! वह मुस्तक़िल आयत नहीं है ! बल्कि आयत का टुकड़ा है. इस आयत के साथ ज़रूर पढ़ी जाएगी ! आवाज़ से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में आवाज़ के साथ और खा़मोशी से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में ख़ामोशी से ! 

हर अच्छे काम की शुरूआत बिस्मिल्लाह पढ़कर करना अच्छी बात है. बुरे काम पर बिस्मिल्लाह पढ़ना मना है.

सूरतुल फ़ातिहा में क्या क्या है? SURAH FATIHA MENKYA KYA HAI 

इस सूरह फ़ातिहा में अल्लाह तआला की तारीफ़, उसकी बड़ाई, उसकी रहमत, उसका मालिक होना, उससे इबादत, अच्छाई, हिदायत, हर तरह की मदद तलब करना, 

दुआ मांगने का तरीक़ा, अच्छे लोगों की तरह रहने और बुरे लोगों से दूर रहने, दुनिया की ज़िन्दगी का ख़ातिमा, अच्छाई और बुराई के हिसाब के दिन का साफ़ साफ़ बयान है.

हम्द यानि अल्लाह की बड़ाई बयान करना….

हर काम की शुरूआत में बिस्मिल्लाह की तरह अल्लाह की बड़ाई का बयान भी ज़रूरी है. कभी अल्लाह की तारीफ़ और उसकी बड़ाई का बयान अनिवार्य या वाजिब होता है 

जैसे जुमे के ख़ुत्बे में, कभी मुस्तहब यानी अच्छा होता है ! जैसे निकाह के ख़ुत्बे में या दुआ में या किसी अहम काम में और हर खाने पीने के बाद ! कभी सुन्नते मुअक्कदा ( यानि नबी का वह तरीक़ा जिसे अपनाने की ताकीद आई हो ) जैसे छींक आने के बाद. ( तहतावी )

“रब्बिल आलमीन“ 

(  मतलब मालकि सारे जहां वालों का ) में इस बात की तरफ इशारा है कि सारी कायनात या पूरी सृष्टि ( यानी की जमीं आसमान सूरज चाँद पानी हवा हर शै पुरे ब्रहमांड की ) अल्लाह की बनाई हुई है ! ओर इसमें जो कुछ है वह सब अल्लाह ही की मोहताज  ( निर्भर ){depend} है.

और अल्लाह तआला हमेशा से है ! ओर हमेशा के लिये है ! ज़िन्दगी और मौत के जो पैमाने हमने बना रखे हैं ! अल्लाह उन सबसे पाक है, वह क़ुदरत वाला है.

”रब्बिल आलमीन” के दो शब्दों (two words) में अल्लाह से तअल्लुक़ रखने वाली हमारी जानकारी की सारी मन्ज़िलें तय हो गई.

“मालिके यौमिद्दीन” 

( मतलब इन्साफ वाले दिन का मालिक ) में यह बता दिया गया ! कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं है 

क्योंकि सब उसकी मिल्क में है और जो ममलूक यानी मिल्क में होता है उसे पूजा नहीं जा सकता. 

इसी से मालूम हुआ कि दुनिया कर्म की धरती है और इसके लिये एक आख़िरत यानी अन्त है. 

दुनिया के खत्म होने के बाद ( मतलब क़यामत या प्रलय के बाद ) एक दिन जज़ा यानी बदले या हिसाब का है ! इससे पुनर्जन्म का सिद्धान्त या नज़रिया ग़लत साबित हो गया.

“इय्याका नअबुदु” 

( मतलब की हम तेरी ही इबादत करे या हम तुझी को पूजें ) अल्लाह की ज़ात और उसकी खूबियों के बयान के बाद यह फ़रमाना इशारा करता है 

कि आदमी का अक़ीदा ( यकीन ) उसके कर्म से उपर है ! और इबादत या पूजा पाठ का क़ुबूल किया जाना अक़ीदे की अच्छाई पर है. 

इस आयत में मूर्ति पूजा यानि शिर्क का भी रद है ! कि अल्लाह तआला के सिवा इबादत किसी के लिये नहीं हो सकती.

“वइय्याका नस्तईन” 

( मतलब और तुझी से मदद चाहें ) में यह सिखाया गया कि मदद चाहना, 

चाहे किसी माध्यम या जरिये से हो ! या फिर सीधे सीधे या डायरैक्ट, हर तरह अल्लाह तआला के साथ ख़ास है ! सच्चा मदद करने वाला वही है. 

बाक़ि मदद के जो ज़रिये या माध्यम है वो सब अल्लाह ही की मदद के प्रतीक या निशान है. बन्दे को चाहिये कि अपने पैदा करने वाले पर नज़र रखे और हर चीज़ में उसी के दस्ते क़ुदरत को काम करता हुआ माने.

इससे यह समझना कि अल्लाह के नबियों और वलियों से मदद चाहना शिर्क है ! ऐसा समझना ग़लत है क्योंकि जो लोग अल्लाह के क़रीबी और ख़ास बन्दे है ! उनकी इमदाद दर अस्ल अल्लाह ही की मदद है. 

अगर इस आयत के वो मानी होते जो वहाबियों ने समझे तो क़ुरआन शरीफ़ में “अईनूनी बि क़ुव्वतिन” और “इस्तईनू बिस सब्रे वसल्लाह” क्यों आता, और हदीसों में अल्लाह वालों से मदद चाहने की तालीम क्यों दी जाती.


“इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम”

( मतलब हमको सीधा रास्ता चला ) इसमें अल्लाह (Allah) की ज़ात और 

उसकी ख़ूबियों की पहचान के बाद उसकी इबादत ( यानी अल्लाह की इबादत ), उसके बाद दुआ की तालीम दी गई है. 

इससे यह मालूम हुआ कि बन्दे को इबादत के बाद दुआ (Prayer)में लगा रहना चाहिये. मतलब नमाज़ के बाद दुआ करना करते रहना चाहिए। 

हदीस शरीफ़ में भी नमाज़ के बाद दुआ की तालीम ( शिक्षा ) दी गई है. 

( तिबरानी और बेहिक़ी ) 

सिराते मुस्तक़ीम

सिराते मुस्तक़ीम का मतलब इस्लाम या क़ुरआन नबीये करीम हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का रहन सहन या हुज़ूर या हुज़ूर के घर वाले और साथी हैं. इससे साबित होता है कि सिराते मुस्तक़ीम यानी सीधा रास्ता अहले सुन्नत का तरीक़ा है 

जो हुज़ूर नबीये करीम सल्लाहो अलैहे वसल्लम के घराने वालों, उनके साथी और सुन्नत व क़ुरआन और मुस्लिम जगत सबको मानते हैं.

“सिरातल लज़ीना अनअम्ता अलैहिम”

 ( मतलब रास्ता उनका जिन पर तुने एहसान किया ) यह पहले वाले वाक्य या जुमले की तफ़सील यानी विवरण है कि सिराते मुस्तक़ीम से मुसलमानों का तरीक़ा मुराद है. इससे बहुत सी बातों का हल निकलता है कि जिन बातों पर बुज़ुर्गों ने अमल किया वही सीधा रास्ता की तारीफ़ में आता है.


“गै़रिल मग़दूबे अलैहिम वलद दॉल्लीन “

( मतलब न उनका जिन पर ग़ज़ब हुआ और न बहके हुओ का ) इसमें हिदायत दी गई है कि सच्चाई की तलाश करने वालों को अल्लाह के दुश्मनों से दूर रहना चाहिये 

और उनके रास्ते, रस्मों और रहन-सहन के तरीक़े से परहेज़ रखना ज़रूरी है. हदीस की किताब ( Book of hadith ) तिरमिजी़ में आया है कि “मग़दूबे अलैहिम” यहूदियों और “दॉल्लीन” इसाईयों के लिये आया है.

सूरह फ़ातिहा के ख़त्म पर “आमीन” कहना सुन्नत यानी नबीये करीम का तरीक़ा है, “आमीन” के मानी है “ऐसा ही कर” या “कु़बूल फ़रमा”.

ये क़ुरआन शरीफ का शब्द नहीं है. 

सूरह फ़ातिहा नमाज़ में पढ़ी जाने या नमाज़ के अलावा, इसके आख़िर में आमीन कहना सुन्नत है.

हज़रत इमामे आज़म का मज़हब यह है कि नमाज़ में आमीन आहिस्ता धीरे से या धीमी आवाज़ में कहा जाए !